I am deleting my poems. I am deleting my poems.
हर घड़ी खुद में हैं उलझे आदमी अब नहीं दिखते हैं हंसते आदमी हर घड़ी खुद में हैं उलझे आदमी अब नहीं दिखते हैं हंसते आदमी
जबकि हूँ मैं आप ही के समाज का हिस्सा। जबकि हूँ मैं आप ही के समाज का हिस्सा।
दोस्त वो, मालिकों को तो शक्ल देखना भी पसंद नहीं. दोस्त वो, मालिकों को तो शक्ल देखना भी पसंद नहीं.
कौन किसका होता है कितने भी लांछन लगे कौन किसका होता है कितने भी लांछन लगे
तो क्यूं किसि के दिल के साथ खेलते हैं ? उनके नाम खराब करते हैं ? तो क्यूं किसि के दिल के साथ खेलते हैं ? उनके नाम खराब करते हैं ?